Wednesday, 2 January 2013

"Avta Bani"

धन निरंकार जी।।।

"लोकीं आखण गृहस्त नू छड के जेहडा जंगली जावे सन्त।

सोहणे सोहणे कपड़े लाह के भगवें कपड़े पावे सन्त।

सन्त है ओह जो लाये समाधी धूणी जेहडा रमाये सन्त।

लोकी कहण जो स्वास चढ़ा के बगल-समाधी लाये सन्त।

घर विच रह के घर नू पाणा सन्ता दी वडीयाई ए।

कहे अवतार पूरे मुरशद तों मै एह सोझी पाई ए।"

धन निरंकार जी।।।

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