Thursday, 13 December 2012

"Avtar Bani"

धन निरंकार जी।।।

एक डली सोने दी लैके गहने कई बणवा लईये।

मुन्दरी छापा हार ते कांटे मरज़ी दे घडवा लईये।

मुड़ के मुन्दरियां छापा हारा नूं जे कर गलवा लईये।

मुड़ सोने दा सोना हो जाए कितने रूप वटा लईये।

एदां बन्दा हिन्दू मुस्लिम सिख दा भेस बणा बैठा।

कहे अवतार असल विच बन्दा वाधू झगड़े पा बैठा।

धन निरंकार जी।।। 
 

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