धन निरंकार जी।....
आस्तिक जगत में भक्ति का विशेष महत्व है। ज्यादातर लोग कथा कीर्तन आदि को ही भक्ति मानते है! उनका विश्वास है की भक्ति से खुश हो कर भगवन फल देंगे, दर्शन देंगे। संसार जो भक्ति कर रहा है वो परमात्मा को बिना जाने की जाती है। ऐसी भक्ति का लाभ नहीं मिलता।
भक्ति के लिए बाबा अवतार सिंह जी लिखते है :-
"भक्ति लोकी अजे न समझे , रब नु पाणा भक्ति है। "
भक्ति का आरम्भ ही तब होता है, जब प्रभु को पाकर इसके साथ नाता जोड़ लिया जाता है। अगर हमारे जीवन में कोई आया ही नहीं, तो हम प्यार किस से करेंगे, भक्ति किसकी करेंगे? जैसे किसी माँ की गोद में बच्चा अगर आया ही नही, तो वे प्यार किस से करेगी? उसका स्नेह किस के साथ बनेगा? इस प्यार और मोह के लिए गोद में बच्चा आना जरूरी है। जैसे बिजली का कनेक्शन ही अगर हमारे घर तक नहीं आया, तो हम चाहे कितने भी बल्ब खरीद ले, हमारे घर में रौशनी नहीं हो सकती। इसी प्रकार यदि प्रभु दातार को अगर जाना नहीं, इसके साथ नाता जुडा नहीं, तो फिर भक्ति भी नही हो सकती। इस दातार को आठों पहर ध्यान में रखना, उठते- बैठते, चलते- फिरते इसके एहसास करना ही भक्ति है। ऐसा अनुभव करना की ये दातार इंसान की हर हरकत से वाकिफ़ है, हर हरकत पर इसकी निगाह है, ये अनुभूति ही भक्ति है। भक्त के लिए एक पल भी ऐसा नहीं होता जब ये परमात्मा गैरहाजिर हो। दुसरे इंसानों की गैरहाजिरी हो सकती है पर इस रभु परमात्मा की गैरहाजिरी एक पल भी नहीं हो सकती। इसकी गैरहाजिरी होती है तो मन में होती है, और जब मन से इसकी गैरहाजिरी होती है,उसी वक्त हमसे बुरे कर्म होते है, हम दुसरो का बुरा सोचते है , दुसरो का बुरा मांगते है। गुरुमत में तीनो चीज़े जरूरी है - भक्ति, भक्त और भगवान! भाव ये की भक्त भी जरूरी है, भक्ति भावना भी जरूरी है और जिसकी भक्ति की जा रही है वे भगवंत भी जरूरी है।
धन निरंकार जी।...
आस्तिक जगत में भक्ति का विशेष महत्व है। ज्यादातर लोग कथा कीर्तन आदि को ही भक्ति मानते है! उनका विश्वास है की भक्ति से खुश हो कर भगवन फल देंगे, दर्शन देंगे। संसार जो भक्ति कर रहा है वो परमात्मा को बिना जाने की जाती है। ऐसी भक्ति का लाभ नहीं मिलता।
भक्ति के लिए बाबा अवतार सिंह जी लिखते है :-
"भक्ति लोकी अजे न समझे , रब नु पाणा भक्ति है। "
भक्ति का आरम्भ ही तब होता है, जब प्रभु को पाकर इसके साथ नाता जोड़ लिया जाता है। अगर हमारे जीवन में कोई आया ही नहीं, तो हम प्यार किस से करेंगे, भक्ति किसकी करेंगे? जैसे किसी माँ की गोद में बच्चा अगर आया ही नही, तो वे प्यार किस से करेगी? उसका स्नेह किस के साथ बनेगा? इस प्यार और मोह के लिए गोद में बच्चा आना जरूरी है। जैसे बिजली का कनेक्शन ही अगर हमारे घर तक नहीं आया, तो हम चाहे कितने भी बल्ब खरीद ले, हमारे घर में रौशनी नहीं हो सकती। इसी प्रकार यदि प्रभु दातार को अगर जाना नहीं, इसके साथ नाता जुडा नहीं, तो फिर भक्ति भी नही हो सकती। इस दातार को आठों पहर ध्यान में रखना, उठते- बैठते, चलते- फिरते इसके एहसास करना ही भक्ति है। ऐसा अनुभव करना की ये दातार इंसान की हर हरकत से वाकिफ़ है, हर हरकत पर इसकी निगाह है, ये अनुभूति ही भक्ति है। भक्त के लिए एक पल भी ऐसा नहीं होता जब ये परमात्मा गैरहाजिर हो। दुसरे इंसानों की गैरहाजिरी हो सकती है पर इस रभु परमात्मा की गैरहाजिरी एक पल भी नहीं हो सकती। इसकी गैरहाजिरी होती है तो मन में होती है, और जब मन से इसकी गैरहाजिरी होती है,उसी वक्त हमसे बुरे कर्म होते है, हम दुसरो का बुरा सोचते है , दुसरो का बुरा मांगते है। गुरुमत में तीनो चीज़े जरूरी है - भक्ति, भक्त और भगवान! भाव ये की भक्त भी जरूरी है, भक्ति भावना भी जरूरी है और जिसकी भक्ति की जा रही है वे भगवंत भी जरूरी है।
धन निरंकार जी।...
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