Wednesday, 14 November 2012

Dhan nirankar ji

हम तो मुकद्दर के मारे थे हुजूर ,
आपने जो देखा ,किस्मत बदल गयी...
हम तो टूटे मस्तूल के सहारे थे हुजूर,
आपने जो थामा, कश्ती सम्हल गयी..
सुना था हमने , पारस का स्पर्श लोहे को भी ,

दमकता सोना बना सकता है ...
हम तो प्यार से अनजाने थे हुजूर,
आपसे जो मिल गए, जिन्दगी संवर गयी .....

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