Thursday, 29 November 2012

"Avtaar Bani"

धन निरंकार जी।।।

घर दे मालक भाझो हुन्दा जीकण सुन्ना डेरा है।

गुर दिस्से तां सिख  लई चानण न दिस्से तां न्हेरा है।

ज्यों प्यासे नु पानी बाझो गल्ल कोई होर सुखांदी नहीं।

ज्यों बिरला दे मारे ताई गल्ल किसे दी भान्दी नहीं।

 ज्यों फुल्लां ते देख बहारां बंद कलि मुस्कांदी है।

ज्यों सुहागन देख पति नू  दिल दिल विच हरशांदी है।

काले बद्दल वेख आकाशीं मोर ज्यों पैलां पान्दा  है।

अवतार तिवें सिख वेख गुरु नु फुल्या नहीं समांदा है।

धन निरंकार जी।।।
 

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