धन निरंकार जी।
भौतिक
दौड़ में हुआ विलासी
आत्मा रहती फिर भी प्यासी
सोच बन गई इसकी सियासी
सदा रहे चेहरे पर उदासी
महक उठे मानव का जीवन
'अमन' प्यार के फूल खिलाएं
भौतिकता की दौड़ में पड़कर
मानवता को भूल न जाएँ I
भौतिकता के जाल में फंसकर
सिसक रही है मानवता
अहंकार के बीज से मन में
पनप रही है दानवता
मानव के कल्याण की खातिर
दानवता को धूल चटायेंभौतिकता की दौड़ में पड़कर
मानवता को भूल न जाएँ I
भौतिकता के मोह में पड़कर
क्यूँ जीवन बर्बाद करें हम
गुरमत पर चल पाए मानव
सतगुरु से अरदास करें हम
मानव तन अनमोल मिला है
व्यर्थ में इसको नहीं गवाएं
भौतिकता की दौड़ में पड़कर
मानवता को भूल न जाएँ
आत्मा रहती फिर भी प्यासी
सोच बन गई इसकी सियासी
सदा रहे चेहरे पर उदासी
महक उठे मानव का जीवन
'अमन' प्यार के फूल खिलाएं
भौतिकता की दौड़ में पड़कर
मानवता को भूल न जाएँ I
भौतिकता के जाल में फंसकर
सिसक रही है मानवता
अहंकार के बीज से मन में
पनप रही है दानवता
मानव के कल्याण की खातिर
दानवता को धूल चटायेंभौतिकता की दौड़ में पड़कर
मानवता को भूल न जाएँ I
भौतिकता के मोह में पड़कर
क्यूँ जीवन बर्बाद करें हम
गुरमत पर चल पाए मानव
सतगुरु से अरदास करें हम
मानव तन अनमोल मिला है
व्यर्थ में इसको नहीं गवाएं
भौतिकता की दौड़ में पड़कर
मानवता को भूल न जाएँ
धन निरंकार जी।
I
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