Wednesday 13 June 2012

"avtaar bani"

धन निरंकार जी

"तेरे दर ते आ के सतगुरु दुनिया दा कुछ  ध्यान नही रहन्दा !
विक जांदी ए अपनी दुनिया मै मेरी दा  मान नही रहन्दा !
चार चुफेरे तुहियों दिसदे दूजी वस्त नजर नहीं औंदी !
इस दुनिया विच वस् जईदें अपनी वि कुछ खबर नि औंदी !
तेरे दर तो दूर जे रहिये कण्डया दे विच वासा हुँदै !
कहे अवतार जगत ए दुखिया पल पल जीव निरासा हुँदै !

धन निरंकार जी

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