धन निरंकार जी।।।।
"कई ज़बानां कर के कठियां उस्तत इसदी गाइये जे।
कवि इक्कठे कर दुनिया दे उपमा एहदी लिखाइये जे।
विद्वाना दे मुंहों कर के महिमा एहदी सुणाइये जे।
विच समुन्दर पा के स्याही घोल दवात बणाइये जे।
फिर भी इस दातार प्रभु दा गीत न गाया जांदा ए।
कहे अवतार इस पारब्रह्म दा अन्त ना पाया जांदा ए।"
धन निरंकार जी।।।।
"कई ज़बानां कर के कठियां उस्तत इसदी गाइये जे।
कवि इक्कठे कर दुनिया दे उपमा एहदी लिखाइये जे।
विद्वाना दे मुंहों कर के महिमा एहदी सुणाइये जे।
विच समुन्दर पा के स्याही घोल दवात बणाइये जे।
फिर भी इस दातार प्रभु दा गीत न गाया जांदा ए।
कहे अवतार इस पारब्रह्म दा अन्त ना पाया जांदा ए।"
धन निरंकार जी।।।।
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