संतोख सरोवर(Santokh sarovar)
धन निरंकार जी संतो..
सरोवार का नाम संतोख सरोवार(santokh sarovar) रखा गया. ऐसा क्या कारण था जिसके कारण सतगुरु बाबा जी ने इस सरोवर का नाम "संतोख सरोवर" रखा.
इसका कारण सिर्फ एक ही है वोह है एक "गुरसिख".
जो गुरसिख वाला जीवन जीते है वोह एक संत बन जाते है, जैसे हम नाम सुनते है, संत कबीर दास जी, संत तुलसी दास जी, और भी कितने संत थे और है भी जिन्होंने अपने कर्मो से अपनी किस्मत बदली है, और उन्ही का नाम आज सबसे ऊँचा होता है.
जो गुरसिखो वाला जीवन जीते है, यानि गुरसिख मतलब ये ही है की गुरु की शिखशाओ को, यानि जो गुरु सिखाता है, और जो गुरुसिख अपने गुरु से सीखता है उस सिखलाई को अपने जीवन में धारण करने वाला ही एक पूरन गुरसिख बन पाता है.
और पूरन गुरसिख बन्ने के लिए पहले पूरन सतगुरु की शरण में जाना पड़ता है. और पूरन सतगुरु वोही है जो पूरी तरह से सत्य का ज्ञान करा दे, सत्य का बोध करा दे, और सत्य केवल एक ही है वह है निरंकार पभु परमात्मा. जो की सत्य है, बाकि यह सब दुनिया झूठ है जो की एक दिन मिट जाएगी और जो नही मिटेगा वह है "सत्य" और नही मिटने वाला सिर्फ ये ही है निरंकार. और ये ही सत्य है.
वोही सत्य का ज्ञान कराने वाला "सतगुरु" कहलाता है, इस सत्य की पहचान करने वाला केवल एक ही सतगुरु होता है, जो इस सत्य का बोध करदे और इस सत्य से वाकिफ करदे.
और फिर उस सतगुरु की सिखलाई को अपने जीवन पर उतारने वाले को "गुरसिख" कहते है.
और जो पूरन सतगुरु की सिखलाई को अपने जीवन में पूरी तरह से उतार लेता है वह फिर एक पूरन गुरसिख के साथ, एक संत भी कहलाता है.
और ऐसे ही एक गुरसिख, ऐसे ही एक संत थे जिनका नाम आज सतगुरु बाबा जी ने अमर कर दिया सरोवर को संतोख सरोवर का नाम दे कर.
अब बात यह आती है की उन्होंने ऐसा क्या किया जो उनके नाम से सरोवर का नाम रख दिया.?
जब सरोवर बन्ने जा रहा था तो सभी लोग सेवा के दोरान रात होने से पहले ही भय के कारण अपने घर चले जाते थे क्योकि जहाँ सरोवर बन्ने जा रहा था वहां पर पहले जंगल हुआ करता था और जंगल होने के कारण वहां पर बहुत सारे जीव-जंतु कीड़े-मकोड़े और कई अन्य जानवर रहा करते थे, जिनके भय के कारण सब लोग सेवा करते समय जैसी ही अँधेरा होने वाला था तो अपने घर को चले जाते थे लेकिन एक शख्स ऐसे थे जिन्हें इन में किसी का डर नही रहता था. और वह दिन क्या, शाम क्या, पूरी रात वही बिताते थे केवल अकेले उस सरोवर की रखवाली करने के लिए, ताकि जो काम किया गया है उसे कोई जानवर या कोई इन्सान ही न आ कर बिगड़ दे.
ऐसे थे वह संत जिन्होंने इतने कर्म किये है तभी आज हम उस सरोवर के जर्रिये अपने शरीर के कितनी बीमारी हटा पा रहे है. वोही एक संत थे जिन्होंने उस सरोवर को सुचारू रूप से बन्ने के लिए इतने बड़े कर्म और योग-दान दिए है, और जो ऐसे कर्म करके अपनी जीवन यात्रा संपन करते है उनका नाम उनका गुरु अमर कर देता है.
जैसे हमारे संत रेवेरेंद संतोख सिंह जी (Sant Reverend Santokh Singh जी) जी का नाम अमर कर दिया है बाबा जी ने सरोवर का नाम "संतोख सरोवर" रख कर.
वह ऐसे संत थे जिन्होंने इतने बड़े कर्म किये और न जाने कितने महान कर्म किये, लेकिन कभी भी अपने कर्मो पर अहंकार, अभिमान नहीं किया, और गुरसिख वाला जीवन जिया.
अवतार वाणी में एक शब्द आता है की........सिख गुरु दा पल-पल छीन छीन, दास ही बन के रहंदा है.
वह काम कमावे गुरसिख जो सतगुरु कहंदा है. जो सतगुरु सिखलोंन्दा है.
तो संतो आप सभी भी उन्ही एक जैसे संतो में से आते हो जिनके कर्म हमेशा ही सतगुरु के बताये रस्ते पर चलते है, तो आप सभी संत दास को आशीर्वाद देना की दास के कर्म भी आप जैसे महान संतो और उन संतो जैसे बन जाये जिन्होंने हमारे लिए बहुत बड़े ताप-त्याग और बलिदान दिए है.
किरपा करना दास भी एक पूरन सतगुरु का एक पूरन गुरसिख बन पाऊ.
और वह बन्ने के लिए दास को वैसे कर्म करने पड़ेंगे जैसे सतगुरु सिखलाना चाह रहे है.
तो किरपा करना वैसे कर्म दास करे जैसा हमारा मुर्शद(murshad)समय का सतगुरु चाहता है अपने एक गुरसिख से.
प्यार से कहना............................"धन निरंकार जी"
धन निरंकार जी संतो..
सरोवार का नाम संतोख सरोवार(santokh sarovar) रखा गया. ऐसा क्या कारण था जिसके कारण सतगुरु बाबा जी ने इस सरोवर का नाम "संतोख सरोवर" रखा.
इसका कारण सिर्फ एक ही है वोह है एक "गुरसिख".
जो गुरसिख वाला जीवन जीते है वोह एक संत बन जाते है, जैसे हम नाम सुनते है, संत कबीर दास जी, संत तुलसी दास जी, और भी कितने संत थे और है भी जिन्होंने अपने कर्मो से अपनी किस्मत बदली है, और उन्ही का नाम आज सबसे ऊँचा होता है.
जो गुरसिखो वाला जीवन जीते है, यानि गुरसिख मतलब ये ही है की गुरु की शिखशाओ को, यानि जो गुरु सिखाता है, और जो गुरुसिख अपने गुरु से सीखता है उस सिखलाई को अपने जीवन में धारण करने वाला ही एक पूरन गुरसिख बन पाता है.
और पूरन गुरसिख बन्ने के लिए पहले पूरन सतगुरु की शरण में जाना पड़ता है. और पूरन सतगुरु वोही है जो पूरी तरह से सत्य का ज्ञान करा दे, सत्य का बोध करा दे, और सत्य केवल एक ही है वह है निरंकार पभु परमात्मा. जो की सत्य है, बाकि यह सब दुनिया झूठ है जो की एक दिन मिट जाएगी और जो नही मिटेगा वह है "सत्य" और नही मिटने वाला सिर्फ ये ही है निरंकार. और ये ही सत्य है.
वोही सत्य का ज्ञान कराने वाला "सतगुरु" कहलाता है, इस सत्य की पहचान करने वाला केवल एक ही सतगुरु होता है, जो इस सत्य का बोध करदे और इस सत्य से वाकिफ करदे.
और फिर उस सतगुरु की सिखलाई को अपने जीवन पर उतारने वाले को "गुरसिख" कहते है.
और जो पूरन सतगुरु की सिखलाई को अपने जीवन में पूरी तरह से उतार लेता है वह फिर एक पूरन गुरसिख के साथ, एक संत भी कहलाता है.
और ऐसे ही एक गुरसिख, ऐसे ही एक संत थे जिनका नाम आज सतगुरु बाबा जी ने अमर कर दिया सरोवर को संतोख सरोवर का नाम दे कर.
अब बात यह आती है की उन्होंने ऐसा क्या किया जो उनके नाम से सरोवर का नाम रख दिया.?
जब सरोवर बन्ने जा रहा था तो सभी लोग सेवा के दोरान रात होने से पहले ही भय के कारण अपने घर चले जाते थे क्योकि जहाँ सरोवर बन्ने जा रहा था वहां पर पहले जंगल हुआ करता था और जंगल होने के कारण वहां पर बहुत सारे जीव-जंतु कीड़े-मकोड़े और कई अन्य जानवर रहा करते थे, जिनके भय के कारण सब लोग सेवा करते समय जैसी ही अँधेरा होने वाला था तो अपने घर को चले जाते थे लेकिन एक शख्स ऐसे थे जिन्हें इन में किसी का डर नही रहता था. और वह दिन क्या, शाम क्या, पूरी रात वही बिताते थे केवल अकेले उस सरोवर की रखवाली करने के लिए, ताकि जो काम किया गया है उसे कोई जानवर या कोई इन्सान ही न आ कर बिगड़ दे.
ऐसे थे वह संत जिन्होंने इतने कर्म किये है तभी आज हम उस सरोवर के जर्रिये अपने शरीर के कितनी बीमारी हटा पा रहे है. वोही एक संत थे जिन्होंने उस सरोवर को सुचारू रूप से बन्ने के लिए इतने बड़े कर्म और योग-दान दिए है, और जो ऐसे कर्म करके अपनी जीवन यात्रा संपन करते है उनका नाम उनका गुरु अमर कर देता है.
जैसे हमारे संत रेवेरेंद संतोख सिंह जी (Sant Reverend Santokh Singh जी) जी का नाम अमर कर दिया है बाबा जी ने सरोवर का नाम "संतोख सरोवर" रख कर.
वह ऐसे संत थे जिन्होंने इतने बड़े कर्म किये और न जाने कितने महान कर्म किये, लेकिन कभी भी अपने कर्मो पर अहंकार, अभिमान नहीं किया, और गुरसिख वाला जीवन जिया.
अवतार वाणी में एक शब्द आता है की........सिख गुरु दा पल-पल छीन छीन, दास ही बन के रहंदा है.
वह काम कमावे गुरसिख जो सतगुरु कहंदा है. जो सतगुरु सिखलोंन्दा है.
तो संतो आप सभी भी उन्ही एक जैसे संतो में से आते हो जिनके कर्म हमेशा ही सतगुरु के बताये रस्ते पर चलते है, तो आप सभी संत दास को आशीर्वाद देना की दास के कर्म भी आप जैसे महान संतो और उन संतो जैसे बन जाये जिन्होंने हमारे लिए बहुत बड़े ताप-त्याग और बलिदान दिए है.
किरपा करना दास भी एक पूरन सतगुरु का एक पूरन गुरसिख बन पाऊ.
और वह बन्ने के लिए दास को वैसे कर्म करने पड़ेंगे जैसे सतगुरु सिखलाना चाह रहे है.
तो किरपा करना वैसे कर्म दास करे जैसा हमारा मुर्शद(murshad)समय का सतगुरु चाहता है अपने एक गुरसिख से.
प्यार से कहना......................
dhan nirankar ji
ReplyDeleteसंतोखसरोवर की निर्मीती बाबाजी ने कब की
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