Friday 20 July 2012

"Bhakti geet"


" धन निरंकार जी "


तेरा इक आसरा होवे सहारे ही सहारे ने
तेरे चरना च दम गुजरे गुजारे ही गुजारे ने।


जिन्हा ने हार मन्नी है उन्हा मैदान मारे ने
बणे जो जित्त ते हामी ने सदा हारे ही हारे ने


ओह बेड़ी डुब नहीं सकदी की जिसदा तू मलाह होवे
उन्हों मझदार अन्दर वि किनारे ही किनारे है

उन्हा दी अपनी आदत है इन्हा दी अपनी फितरत है
उन्हा डोबे ही डोबे ने इन्हा तारे ही तारे ने


एह तुठ पैन्दा है भोला पातशाह भोले सभावां ते
जो चातर बन के आन्दे ने मिले लारे ही लारे ने


तेरे इक आसरा होवे साहारे ही साहारे ने ...........

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