धन निरंकार जी..
बाबाजी के स्पष्ट मत है की सभी सत्गुन का आधार आतम ज्ञान है जो सदेव मानव रूप में सतगुरु से ही प्राप्त होता है ! हर बार एक दुसरे के चरण स्पर्श करना निरंकारी मिशन की कोई मौलिक विशेषता नहीं अपितु प्राचीन मान्यता दंडवत प्रणाम का ही एक रूप है ! बाबाजी के अनुसार चरण स्पर्श का महत्व तभी है जब वह प्रेम, श्रधा और आत्मिक भाव से हो ! जब मानव सबके लिए चाहे वह विरोधी ही हो प्रेम रखता है तो वह मानव धरम का अनुयायी हो जाता है! तभी तो बाबाजी कहते है :
क्या करेगा प्यार वह ईमान से ?
क्या करेगा प्यार वह भगवान से?
जनम लेकर गोद में इंसान की
कर न पाया प्यार जो इंसान से......
साध सांगत बाबाजी से अरदास है की जैसा वह हमारा जीवन चाहते है वैसा हम बना पाए
प्यार से कहना धन निरंकार जी !
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